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सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ १३ ॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥
देवी माहात्म्यं अपराध क्षमापणा स्तोत्रम्
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥ ९ ॥
क्लींकारी काल-रूपिण्यै, बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥
यस्तु कुंजिकया click here देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
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देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति चतुर्थोऽध्यायः
श्री दुर्गा अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्
देवी वैभवाश्चर्य अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्
ग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं. धन लाभ, विद्या अर्जन, शत्रु पर विजय, नौकरी में पदोन्नति, अच्छी सेहत, कर्ज से मुक्ति, यश-बल में बढ़ोत्तरी की इच्छा पूर्ण होती है.